कबिता लेखन मिती २०१०-०२-२१ तारिक 10pm
भुलाकर हम आगे निक्ले
अभी नही हे वो दुनियाँ !
भुल गए सालो पेहेले वो गीत
फिर भि !
क्यु सुनारही मुझे वो पुरानी कहांनियां।
जिस चिज मेरा पास है!उसका मोल नहीं
जिसका मोल है!वो मेरा पास नही है
बिना बिछोडके भि हम दोनो दुर है
बिछोडके भि वो मेरा पास है!
क्या कहुं!किस्को कहुं!
मै कौन हुं!मै क्या हुं!
समझ आके भि समझ नहिंपाता
रिस्ता ये क्यु अनौखा!
हम जुदातो होना नहीं चाहाता
फिर भि जुदा हुवा !
रबु ना करे जुदा किसिका ।
सालों बित गये!यांदों टुट गये
कहिंपे दुर चांद गिर गये!
भुलाकर भि भुला नहीं पाया
दर्पण फिर जुडगये ।
टुटाथा सालों पेहेले दिल मेरा
भुलाकर भि भुला नही पाया याद किसिका!
दर्पण टुटे दिल टुटे हमे भि टुटे
दो दिलका प्यार टुटे !
फिर भि याद नही टुटा उसिका।
पलभरमे हंसाता है!पल भरमे रुलाता है!!
हमे ये कैसी दुनियाँ!
सालों सांलोंका ये अजिब्सा
क्यु सुनाता है !
इस रिस्ताका हमे ये कहांनियां ।
अर्पण तामाङ
तरहरा-२ सुनसरी
हाल दोहा कतार
मलाई त्यती खासै हिन्दी त आउँदैन तै पनि आज अचानक हिन्दी गीत मेरा नैना साउन भदौ भन्ने गित्को बोल सुनिरहेको थिए
खै के भो अचानक मनमा यो कबिता लेख्न मन लाग्यो शायद हिन्दी शब्द हरु भन्न खोजेका ठाउमा नमिलेका होलान तै पनि लेख्ने कोशीस गरेको छु गल्ती भए माफ गरिदिनु होला । धन्यवाद
Sunday, February 21, 2010
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