लामो समय देखि मैले ब्लग सम्प्रशेण गरेको थिन आज लामो समय पछी सन२००४ तिर एउटा हिन्दीमा कबिता
लेखेको थिए आज त्यसैलाई प्रकाशनको तयारीमा छु मैले बम्बै बशाईको क्रममा जे देखे त्यसलाई कबिताको
माध्यमबाट ऐना देखाउने कोशिस गरेकोछु प्रश्तुत छ उक्त कबिता !
कल था मेरा आगे पिछे
दोश्त अपना सारा !
खेल्ते थे मेरा जिसम पर
था अपना यारा !!
मदिरा था एक प्याला
रसम भरिथा एक जवानि !
लेते थे मुझे एक सराब समझ्के
दुनियाँ हुवा था एक दिवानी !!
पिई लेता था मुझे मदिरा समझके
मेहि था एक शराबी !
सराबि जो नबन्गएथे
समझतेथे वो बर्बादी !!
बोल्ते थे पिने वाला मर्द मुझे
तुही मेरा शैयाँ !
रुपए थे मेरे लिए दुनियाँ
ना सम्झे किसीको भैया !!
निदमे थे लोग सारा
कभितो रात हि!हुई नहिपाए !!
बिक्ती थी जिसम मेरा
मिल्ता था मुझे रुपएँ !!
खेलेथे खाते भि मै पर
खलेथे कभि नेताओँ !
रँगिन था मुझे वो साम
खलेथे कित्ना अभिनेताओँ !!
चुमते थे कभि अंग अंग पर
अमृत था मेरा अन्दर !
अमृत जो था वो बहार
उत्नाही था मेरा सराब अन्दर !!
बनी थि कित्नाका सैयाँ मे
कित्नाका बनीथि प्यारी !
कित्नासे बनाएथे ताजमेहेल मेरे लिए
कित्नाका बनीथि रानी !!
ना राहे जिसम मेरा
ना राहे आज मेरा जवानि !
बनगए सब दुर मेरा
हो गए अभि सब बैमानि !!
ना राहे रुपए साथ मेरा
ना मिली ईज्जत !
गुम होगए अपना सारा
फगत मिली ब्यईजत !!
सहारा दिने वाला ना कोहीहे
मा बाप ना कोहीहे भाई बेहेना !
फिर भी !जिनेका उम्मेद है
मुझे कभि ! अलबिदा!! ना केहेना !!!
समाप्त
लेखक:अर्पण तामाङ -
हाल दोहा कतार
Tuesday, February 9, 2010
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